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Pollution and the role of chemistry in its prevention.

  प्रदूषण और उसे रोकने में रसायन विज्ञान की भूमिका।


जल प्रदूषणएक गंभीर चुनौती

जलजीवन का आधार हैलेकिन आज यह प्रदूषण की विकराल समस्या से जूझ रहा है। जल प्रदूषण का अर्थ है जल स्रोतोंजैसे नदियोंझीलोंतालाबों और भूजल में हानिकारक पदार्थों का मिलनाजिससे उनकी गुणवत्ता बिगड़ जाती है और वे उपयोग के लायक नहीं रह जाते। यह समस्या सिर्फ भारत में ही नहींबल्कि वैश्विक स्तर पर एक बड़ी चुनौती बन गई है।

जल प्रदूषण के मुख्य कारणों में औद्योगिक कचराकृषि अपशिष्ट (कीटनाशक और उर्वरक), शहरी सीवेजऔर घरेलू कचरा शामिल हैं। ये प्रदूषक  केवल जलीय जीवों के लिए खतरा पैदा करते हैंबल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डालते हैंजिससे हैजाटाइफाइड और पेचिश जैसी बीमारियाँ फैलती हैं।

प्रदूषण के प्रकार और उनके स्रोत

जल प्रदूषण को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बांटा जा सकता हैबिंदु स्रोत (Point Source) और गैर-बिंदु स्रोत (Non-Point Source)

  • बिंदु स्रोत प्रदूषण किसी एक विशिष्ट स्थान से होता हैजैसे किसी उद्योग की पाइपलाइन या सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकलने वाला पानी।
  • गैर-बिंदु स्रोत प्रदूषण का कोई एक निश्चित स्रोत नहीं होता। यह व्यापक क्षेत्र से आता हैजैसे खेतों से बारिश के पानी के साथ बहकर आने वाले कीटनाशक और उर्वरकया शहरी सड़कों से बहकर आने वाले तेल और कचरे।

जल में पाए जाने वाले प्रमुख प्रदूषकों में शामिल हैं:

  • जैविक प्रदूषक: मानव और पशुओं के मल-मूत्र से उत्पन्न होने वाले जीवाणुवायरस और परजीवी।
  • रासायनिक प्रदूषक: औद्योगिक अपशिष्ट से निकलने वाले भारी धातुएँ (जैसे सीसापाराकैडमियम), कीटनाशकप्लास्टिक और डिटर्जेंट।
  • पोषक तत्व: कृषि से आने वाले नाइट्रेट और फॉस्फेट जो जल में शैवालों (Algae) की अत्यधिक वृद्धि का कारण बनते हैंजिसे यूट्रोफिकेशन कहते हैं।
  • ठोस अपशिष्ट: प्लास्टिक की बोतलेंपॉलीथीन बैग और अन्य कचरा।

रसायन विज्ञान की भूमिकासमाधान की कुंजी

जल प्रदूषण की समस्या को समझने और उसका समाधान करने में रसायन विज्ञान की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। रसायन विज्ञान हमें जल की रासायनिक संरचनाउसमें घुले हुए प्रदूषकों की पहचान और उन्हें हटाने के तरीके सिखाता है। यह जल उपचार और शुद्धि की विभिन्न तकनीकों का आधार है।

1. जल गुणवत्ता का विश्लेषण

जल प्रदूषण को रोकने का पहला कदम है प्रदूषकों की पहचान करना। रसायन विज्ञान की मदद से हम जल के विभिन्न मापदंडों का विश्लेषण कर सकते हैं:

  • pH मान: जल की अम्लता या क्षारीयता को मापना।
  • घुली हुई ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen - DO): जल में ऑक्सीजन की मात्राजो जलीय जीवन के लिए महत्वपूर्ण है।
  • जैविक ऑक्सीजन मांग (BOD) और रासायनिक ऑक्सीजन मांग (COD): ये दोनों पैरामीटर जल में मौजूद कार्बनिक पदार्थों की मात्रा को दर्शाते हैं। BOD बताता है कि सूक्ष्मजीवों को इन पदार्थों को विघटित करने के लिए कितनी ऑक्सीजन चाहिएजबकि COD रासायनिक ऑक्सीकरण द्वारा आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा बताता है। उच्च BOD और COD का मतलब है कि जल अत्यधिक प्रदूषित है।
  • भारी धातुओं और अन्य रसायनों का पता लगाना: परमाणु अवशोषण स्पेक्ट्रोस्कोपी (Atomic Absorption Spectroscopy) और गैस क्रोमेटोग्राफी (Gas Chromatography)

·        पानी में मौजूद हानिकारक रसायनों और भारी धातुओं का पता लगाने के लिए परमाणु अवशोषण स्पेक्ट्रोस्कोपी (Atomic Absorption Spectroscopy) और गैस क्रोमेटोग्राफी (Gas Chromatography) जैसी आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। ये तकनीकें पानी में बहुत कम मात्रा में मौजूद प्रदूषण को भी पहचान सकती हैं।

 

·        परमाणु अवशोषण स्पेक्ट्रोस्कोपी (AAS)

·        यह तकनीक खास तौर पर पानी में भारी धातुओं जैसे कि सीसा (lead), पारा (mercury), और आर्सेनिक (arsenic) की जाँच के लिए उपयोग होती है। इस प्रक्रिया मेंपानी के नमूने को बहुत अधिक तापमान पर गर्म करके उसमें मौजूद धातुओं को उनके परमाणु रूप में बदला जाता है। इसके बादइन परमाणुओं पर एक विशेष प्रकार का प्रकाश डाला जाता है। हर धातु एक अलग रंग के प्रकाश को सोखती है। जितना ज़्यादा प्रकाश सोखा जाता हैपानी में उस धातु की मात्रा उतनी ही ज़्यादा होती है।

 

·        गैस क्रोमेटोग्राफी (GC)

·        यह तकनीक उन हानिकारक रसायनों का पता लगाती है जो पानी में घुले होते हैंजैसे कि कीटनाशक (pesticides) और औद्योगिक रसायन (industrial chemicals) इसमेंपानी के नमूने को भाप में बदलकर एक लंबी ट्यूब से गुज़ारा जाता है। अलग-अलग रसायन इस ट्यूब में अलग-अलग गति से आगे बढ़ते हैं और अंत में अलग-अलग समय पर बाहर आते हैं। एक सेंसर इन रसायनों को पहचान लेता है और उनकी मात्रा को रिकॉर्ड करता है। इस तरह, GC हमें यह जानने में मदद करती है कि पानी में कौन-से कार्बनिक रसायन (organic chemicals) मौजूद हैं।

 

  • 2. जल उपचार और शुद्धिकरण तकनीकें

एक बार जब प्रदूषकों की पहचान हो जाती हैतो रसायन विज्ञान इन प्रदूषकों को हटाने के लिए विभिन्न उपचार विधियों का आधार बनता है।

  • स्कंदन और अवसादन (Coagulation and Sedimentation)

·        यह जल शोधन (water purification) की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया हैजिसमें जल में मौजूद अशुद्धियों को हटाकर उसे पीने योग्य बनाया जाता है। स्कंदन और अवसादन (Coagulation and Sedimentation) की प्रक्रिया को समझने के लिएइसे दो अलग-अलग चरणों में बाँटा जा सकता हैस्कंदन (Coagulation) और अवसादन (Sedimentation).

·        स्कंदन (Coagulation)

·        इस चरण मेंजल में फिटकरी (एल्यूमीनियम सल्फेट) जैसे रसायनों को मिलाया जाता हैजिन्हें स्कंदक (coagulants) कहते हैं। ये रसायन जल में मौजूद बहुत महीन और हल्के कणों (जैसे मिट्टीगादऔर अन्य निलंबित ठोस पदार्थके नकारात्मक आवेश (negative charge) को बेअसर कर देते हैं। इन कणों पर नकारात्मक आवेश होने के कारण वे एक-दूसरे को प्रतिकर्षित (repel) करते हैं और जल में तैरते रहते हैं। जब इनका आवेश बेअसर हो जाता हैतो ये कण आपस में चिपकने लगते हैं और छोटे-छोटे गुच्छे (flocs) बनाना शुरू कर देते हैं। इस प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य जल में मौजूद अशुद्धियों को आपस में जोड़कर बड़े समूह में बदलना है।

 

·        अवसादन (Sedimentation)

·        स्कंदन के बादजल को एक बड़े टैंक या जलाशय में कुछ समय के लिए शांत छोड़ दिया जाता है। इस दौरानस्कंदन से बने बड़े और भारी गुच्छे (flocs) गुरुत्वाकर्षण (gravity) के कारण धीरे-धीरे टैंक के नीचे बैठ जाते हैं। यह प्रक्रिया ही अवसादन (sedimentation) कहलाती है। इन गुच्छों के नीचे बैठने के बादऊपर का साफ पानी अलग कर लिया जाता हैऔर नीचे बैठी गाद (sludge) को हटा दिया जाता है। इस चरण से जल में से लगभग 90% तक निलंबित ठोस पदार्थ (suspended solids) हटा दिए जाते हैं।

·        इस तरहस्कंदन और अवसादन की यह संयुक्त प्रक्रिया जल को पीने योग्य बनाने के लिए एक प्रभावी और महत्वपूर्ण कदम हैजिसके बाद जल को और भी शुद्ध करने के लिए फिल्टरेशन और कीटाणुशोधन (disinfection) जैसी प्रक्रियाओं से गुजारा जाता है।

 

  • क्लोरीनीकरण और ओजोनेशन (Chlorination and Ozonation): जल को रोगाणु-मुक्त बनाने के लिए क्लोरीन या ओजोन का उपयोग किया जाता है। क्लोरीन एक प्रभावी कीटाणुनाशक हैजबकि ओजोन एक मजबूत ऑक्सीकारक है जो कई जैविक और रासायनिक प्रदूषकों को नष्ट कर सकता है।
  • सक्रिय कार्बन फिल्टर (Activated Carbon Filters): सक्रिय कार्बन की सतह पर बड़ी संख्या में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। यह अपनी अधिशोषण (Adsorption) क्षमता के कारण जल में घुले हुए कार्बनिक प्रदूषकोंजैसे कीटनाशकों और गंध पैदा करने वाले रसायनों को हटा देता है।
  • आयनों का विनिमय (Ion Exchange): यह तकनीक जल से कठोरता (कैल्शियम और मैग्नीशियम आयनऔर भारी धातुओं को हटाने के लिए उपयोग की जाती है। इसमें एक विशेष राल का उपयोग होता है जो हानिकारक आयनों को अवशोषित करता है और बदले में अहानिकर आयन छोड़ता है।
  • उन्नत ऑक्सीकरण प्रक्रियाएं (Advanced Oxidation Processes - AOPs): ये नई तकनीकें हैं जो अत्यधिक प्रतिक्रियाशील हाइड्रॉक्सिल रेडिकल्स (hydroxyl radicals) का उत्पादन करती हैं। ये रेडिकल्स अधिकांश जैविक प्रदूषकों को पूरी तरह से ऑक्सीकृत कर देते हैं। इस प्रक्रिया में हाइड्रोजन पेरोक्साइड (H2​O2​) और पराबैंगनी प्रकाश (UV light) का उपयोग किया जाता है।

 


भविष्य की चुनौतियाँ और समाधान

भले ही रसायन विज्ञान ने जल प्रदूषण से लड़ने में महत्वपूर्ण प्रगति की हैफिर भी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। नैनोटेक्नोलॉजी और हरित रसायन विज्ञान (Green Chemistry) जैसे नए क्षेत्रों में अनुसंधान चल रहा है।

  • नैनोटेक्नोलॉजी: नैनो-कणों का उपयोग करके अत्यधिक प्रभावी और लागत-कुशल फिल्टर विकसित किए जा रहे हैं जो जल से सूक्ष्म प्रदूषकों को भी हटा सकते हैं।
  • हरित रसायन विज्ञान: इस क्षेत्र का उद्देश्य ऐसी रासायनिक प्रक्रियाओं और उत्पादों को विकसित करना है जो पर्यावरण के लिए सुरक्षित हों। इसका उपयोग प्रदूषण फैलाने वाले रसायनों के उत्पादन को कम करने और उनके सुरक्षित विकल्प खोजने में किया जा रहा है।

अंततःजल प्रदूषण एक जटिल समस्या है जिसके समाधान के लिए बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। रसायन विज्ञान हमें इस समस्या को समझनेउसका विश्लेषण करने और प्रभावी समाधान प्रदान करने के लिए आवश्यक उपकरण और तकनीकें प्रदान करता है। हालांकिकेवल तकनीकी समाधान ही पर्याप्त नहीं हैं।

हमें जागरूकता बढ़ानेसख्त कानूनों को लागू करने और व्यक्तिगत स्तर पर जिम्मेदार व्यवहार अपनाने की भी आवश्यकता है। जब विज्ञाननीति और समाज मिलकर काम करेंगेतभी हम अपने जल स्रोतों को भविष्य के लिए स्वच्छ और सुरक्षित रख पाएंगे।